दिल की बात
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हर चेहरे पर मुस्कान सदा हर चेहरे पर था भोलापन,
हाँ-हाँ ऐसा ही होता था कान्हा जी का वृंदावन|
आज सजे हैं मंदिर सारे जैसे कोई बाज़ार सजे,
और वहाँ पर रोज़ खरीदे-बेचे जाते हैं भगवन|
सेवा की अनुमती मिली तो लगी लॉटरी महंत जी की,
बेच दिया लंगोट-दुपट्टा, बेच दिया कान्हा का तन|
मूरत को चढ़े सोने का मुकुट, निर्वस्त्र को वस्त्र नहीं मिलते,
अपनी धरती पर देख ये अधर्म रोता होगा कान्हा का मन|
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